भटक रहा था मैं बादल.सा घाटी.घाटी परबत.परबत तभी अचानक पास झील केए पेड़ों के नीचे मैंने देखा डैफोडिल का एक समन्दर मस्त हवा में झूम रहा था जब मैं अकेला घूम रहा था
आसमान पर तारे जगमग अनगिन जैसे आस.पास खाड़ी के फैले एक झलक में देखे मैंने कई हज़ारए मार.मार सर झूम रहे थेए
नाच रही थीं पास ही उनके गो लहरें भी डैफोडिल की खुशियाँ लेकिन देखे ही बनती थीं खुश होना था किसी कवि का इस महफिल में अति स्वाभाविकए हुआ मग्न मैं देख रहा थाए पर मुझको मालूम नहीं था क्या खजाना इनमें छिपा था
अक्सर जब बैठा होता हूँ घर में मैं आराम से अपने सोच.मग्न या खाली.खाली