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April 30, 2024
शिकवे द्वारा संजय
ये दिया है जलाता है हर हाथ बेदर्दी से।
पर शिकवा सभी को तेज हवाओं से है।।
अगर डर गमों से है तो फिर शिकवा कैसा।
इस दिल को हमने दरिया बना रक्खा है।।
शिकवा है कोई मिले दिल के दाग दिखाऊं।
उजाड़ बंजर है हरियाली कैसे समझाऊं।।
रोशनी दूर है मुझसे कोई शिकवा भी नहीं।
मेरी पीड़ाओं में कुछ ऐसा अंधेरा भी नही।।
शिकवा है कब खुलेगी खिड़की मेरी तरफ।
कब होगा रुख रब का जैसा हूं मेरी तरफ।।
शिकवे गीले दिल की तकलीफें कम नही करते।
हजारों सितम है दुनिया में सितम हम नही करते।।
गैरों की शिकायत पे क्या मिला दूर जा के हमसे।
वो तो खुश हैं क्या मिला तुझे करके शिकवे हमसे।।
शिकवा है इतना किस्मत पर गुरुर ना कर।
म तूफानों में दरखतों को गिरते देखा है।।
अपने हो शिकवा वाजिब है और मैं चुप हूं।
अब हर लम्हा दरियों में सैलाब नहीं आते।।
वैसे तो बे सबब ही बाहर निकल जाते हैं।
मैं बुलाऊं तो कामों की लिस्ट गिनाते हैं।।
संजय गजब अदा है अजब तेरी कहानी।
फिक्र करो मेरी पूछते गैरों की जुबानी।।